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बसंत पंचमी का पर्व पूरे भारतवर्ष में बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत विविधताओं से भरा देश है। भारत में वसंत ऋतु के आगमन पर पीले वस्त्रों पीले पुष्प के साथ माता सरस्वती की पूजा कर बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है।
वर्ष 2023 में बसंत पंचमी का त्यौहार किस तारीख को मनाया जाएगा, हम आपको विस्तार से बताते हैं, कब, कैसे तथा किस तरीके से बसंत पंचमी मनाई जाती है-
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Vasant Panchami 2023
वर्ष 2023 में वसंत पंचमी का पर्व 25जनवरी को मनाया जाएगा। सुबह 12:37:09 से दोपहर 12:33:33 तक रहेगा। पूजा अवधि 0 घंटे 3 मिनट की होगी।
बसंत पंचमी का पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर पड़ता है। इसी दिन से भारत में बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है। बसंत पंचमी को सूर्योदय से बाद तथा मध्याह्न से पहले सरस्वती पूजा शुभ मानी जाती है । इसी समय को पूर्वाहन कहते हैं। अगर पंचमी तिथि दिन के मध्य से या बात से शुरू होती है, तो ऐसी स्थिति में वसंत पंचमी की पूजा अगले दिन की जाती है।
कभी भी पंचांग के अनुसार पंचमी चतुर्थी तिथि को भी पड़ जाती है। मान्यता के अनुसार बसंत पंचमी के दिन देवी रति और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने का बड़ा महत्व है।
एक मान्यता यह भी है कि बसंत पंचमी के दिन अगर कोई पति पत्नी भगवान कामदेव और देवी रति की षोडशोपचार पूजा करते हैं। तो उनका वैवाहिक जीवन खुशियों भरा रहता है, उनके रिश्ते में मजबूती रहती है और वह जीवन पर्यंत साथ रहते हैं। खुशी पूर्वक जीवन संपन्न करते हैं, इसीलिए लोग कामदेव और देवी रति की पूजा भी करते हैं बसंत पंचमी के दिन इस प्रकार हम देख सकते हैं कि बसंत पंचमी का विशिष्ट महत्व है।
सरस्वती पूजा का महत्व | Importance of Saraswati Puja
सरस्वती माता सरस्वती जैसा कि हम सब जानते हैं देवी सरस्वती ज्ञान विद्या शिक्षा कला साहित्य संगीत की देवी है। उनकी आराधना करने से लोक साहित्य शिक्षा कला इत्यादि में निपुण होते हैं ।माता सरस्वती को पढ़ाई का स्रोत माना जाता है। सभी लोग पढ़ाई करते वक्त किसी भी चीज की शिक्षा लेते वक्त शुभ कार्य को शुरू करते वक्त शिक्षा के क्षेत्र में सर्वप्रथम देवी सरस्वती को नमन कर कार्य शुरू करते हैं।
उनके इसी श्रद्धा को देखकर माता सरस्वती प्रसन्न होकर उन पर कृपा भी करती है। सभी भारतीयों के जीवन में सरस्वती माता का विशेष विशेष आकर्षण विशेष आकर्षण एवं महत्व है।
पंचमी की पूजा लक्ष्मी जी की पूजा के बिना अधूरी है। सभी लोग धन की देवी माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा भी इसी दिन करते हैं। लोग देवी सरस्वती और माता लक्ष्मी की पूजा साथ-साथ करते हैं। कारोबारी, व्यवसाई, उद्यमी लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जीवन पर प्रसन्न होकर श्री सूक्त का पाठ करके लक्ष्मी जी को प्रसन्न करते हैं। माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर हम हैं धन संपन्न बनाती है।
पीले वस्त्रों का महत्व | Importance of Yellow Clothes
हम सब जानते हैं बसंत पंचमी बसंत ऋतु के आगमन का संदेश है। पेड़ों पर बाहर आती है। खेतों में सरसों के फूल पीले फूल सोने की तरह चमकने लगते हैं, गेहूं ,आम के पेड़ों पर पत्तों का मांझा, रंग बिरंगी तितलियां मंडराने लगते हैं, तब बसंत ऋतु का आगमन होता है। हर और पीलात्व छाया रहता है। इसीलिए मान्यता हुई की माता सरस्वती को प्रसन्न करना है, तो पीले वस्त्र धारण करना होगा।
तभी से यह रिवाज बन गया की सरस बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र धारण करना उपयुक्त रहता है। तभी से लोग पीले वस्त्र पहनकर माता सरस्वती की पूजा करते हैं।
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बसंत पंचमी की पौराणिक कथा | Pauranik katha
कथा -1: मान्यता के अनुसार भगवान शिव से आज्ञा लेकर भगवान ब्रह्मा ने जीवो पर मनुष्य की योनि की रचना की, लेकिन उनके सृजन से वह संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने चारों और मूल छाया रहता था तब से ब्रह्मा जी ने समस्या निवारण के लिए कमंडल से जल अपनी हथेली पर लेकर संकल्प स्वरूप उसे छिड़ककर भगवान विष्णु की स्तुति की ब्रह्मा जी की स्तुति शंकर भगवान विष्णु तुरंत सम्मुख प्रकट हो गए। उनकी समस्या जानकर विष्णु ने आदि शक्ति दुर्गा माता का हवन किया।
माता दुर्गा भी तुरंत ही प्रकट हो गई और संकट दूर करने के लिए निवेदन किया उनसे विष्णु जी और ब्रह्मा जी की बातें सुनने के बाद माता दुर्गा भी तुरंत ही प्रकट हो गई और संकट दूर करने के लिए निवेदन किया। उनसे विष्णु जी और ब्रह्मा जी की बातें सुनने के बाद माता दुर्गा ने शरीर से सफेद रंग का भारी तेज उत्पन्न कर एक दिव्य नारी के रूप में प्रकट हुई।
यह स्वरूप चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था। जिसके हाथ में वीणा हाथ में वर मुद्रा थे। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से तेज से प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुर वादन कर संसार के समस्त जीव-जंतुओं प्राणियों को वाणी प्राप्त हुई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया, पवन ने चलने लगी, उनकी सर सर सुनाई देने लगी। सभी देवताओं ने शब्दों और रस का संचार कर देने वाली देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती कहा ।
आदिशक्ति ने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे तेज उत्पन्न हुई। देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेगी, लेकिन जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति है, पार्वती महादेव की शक्ति है, उसी प्रकार देवी सरस्वती आपकी शक्ति होंगी, ऐसा कहकर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते-देखते वहीं पर अंतर्धान हो गई।
इनके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी, वाग्देवी आदि अनेक नामों से विद्या की देवी बुद्धि प्रदाता मान कर संबोधित किया जाता है। माना जाता है कि संगीत की उत्पत्ति उन्हीं से हुई है। वसंत पंचमी को उनके जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार, श्री कृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था,कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और वरदान स्वरुप पूरे भारतवर्ष में बसंत पंचमी के दिन विद्या देवी सरस्वती की पूजा होने लगी और अब तक हो रही है ।
कथा -2: महत्व के अनुसार, रावण द्वारा सीता माता की हरण के बाद भगवान श्री राम दक्षिण की ओर माता सीता की खोज में गए। जिन जिन स्थानों पर बैठ गए दंडकारण्य भी था। उनमें शबरी नामक माता भी रहती थी। उनकी कुटिया में पधार कर भगवान राम ने उनके मीठे और झूठे बेर । इसी क्षेत्र में गुजरात और मध्यप्रदेश फैला हुआ है। गुजरात के डांग जिले का वह भाग जहां पर माता शबरी का आश्रम था।
बसंत पंचमी के दिन श्री रामचंद्र वहां पर गए थे और उन क्षेत्रों के निवासियों ने एक शीला को पूछते हैं और वहां पर श्रद्धा श्री राम आकर यहीं पर बैठे थे। माता शबरी का मंदिर भी है। पूरे वसंत में पीले पीले फूल की शोभा को पढ़ाते हैं।
कथा -3: बसंत पंचमी को ही आता है, राजा भोज ने एक विशाल प्रति भोज का आयोजन किया था, जो 40 दिन तक चला था।
वर्ष 2023 में वसंत पंचमी का पर्व 25 जनवरी को मनाया जाएगा। सुबह 12:37:09 से दोपहर 12:33:33 तक रहेगा।
पूजा अवधि 0 घंटे 3 मिनट की होगी।
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बसंत पंचमी कब है?
बसंत पंचमी 25 जनवरी को है।
बसंत पंचमी पर किसकी पूजा होती है ?
बसंत पंचमी पर माता सरसवती की पूजा होती है।
बसंत पंचमी पर किस रंग के वस्त्र पहने जाते है?
बसंत पंचमी पर पीले रंग के वस्त्र पहने जाते है।